कुलगीत -

महाविद्यालय कुलगीत

भव्य, श्रव्य, दिव्य ज्ञानदायिनी परम्परा
पावनी नितान्त है नित यहां वसुन्धरा |

वीरपुत्र देशहित में ही जो लड़ें,
थे समक्ष शत्रुओं के वज्र से खड़े,
शत्रुदल में भीतिभाव जो सदा भरें,
जिनका यशोगान दिग्-दिगंत भी करें,

उन अमर शहीदों की स्वयंवरा ये धरा |
वीरभोग्या पावनी नित यहाँ वसुन्धरा ||

ऋषियों की तपोभूमि तत्वदार्शिता,
गूंजती ओजस्वियों की ओजस्विता,
मंजुनादयुक्त सुरसरि प्रवाहिता,
इस धरा की धुलि में दिव्य दिव्यता,

शस्य श्यामला, सुरम्य है अतीव उर्वरा |
रत्नगर्भा, अन्नदा नित यहाँ वसुन्धरा ||

‘बृजमंगल’ जी की यही तपोभूमि,
उदात्तभावयुक्त जिनकी मनोभूमि,
कर्म था पवित्र, वाणी सुसंस्कृता,
ये विद्या-केंद्र उनकी दूरदर्शिता |

था चरित्र उनका अति सौम्य, सादगी भरा |
थाती उस विभूति की है वही वसुन्धरा ||

नवोन्मेषजा नव्यभावभविता,
नवप्रसून परिमलों से सुवासिता,
नवकलाकलाप विषयों से मंडिता,
ज्ञानभूमि ज्ञान से सदा अलंकृता |

अगाधबोधाराधिका, किर्तिदा, गुरुतरा |
सर्वदा ही वन्दिता नित यहां वसुन्धरा ||

सव्दिवेक, बोध, शोध की प्रदायिनी,
ज्ञानचक्षु खोलती ये ज्ञानदायिनी,
प्रहरी संस्कारों की ज्ञानकाशिका,
अस्मिता जगाती ये उरप्रकाशिका |

ज्ञान साधना की चिर साधिका बनी धरा |
सर्वविध पुरःसरा नित यहां वसुन्धरा ||

                       डॉ० विनीता शुक्ला