प्राचार्य का सन्देश

सम्मानित मित्रों एवं प्रिय छात्र/छात्राओं -- "न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते" इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र (अन्य )कुछ भी नहीं है। ज्ञानवान एवं चरित्रवान युवा किसी भी राष्ट्र की प्रगति एवं विकास के आधार -स्तंभ होते हैं। प्रत्येक शैक्षणिक संस्था का मूल उद्देश्य ज्ञान द्वारा छात्र-छात्राओं का चरित्र निर्माण कर उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना होता है जिससे वे राष्ट्र के निर्माण एवं प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान दें सकें।अतः हमारा नित प्रयास रहेगा कि विज्ञ प्राध्यापकगण के 'ज्ञानोत्पादन', 'ज्ञान- प्रसारण' एवं 'ज्ञान- प्रकीर्णन' से महाविद्यालय इस उद्देश्य को सम्यक् रुप से पूर्ण कर सके।
आधुनिक शिक्षा में नित नए आयाम जुड़ रहे हैं ।महाविद्यालय को इनके अनुरूप तैयार कर विद्यार्थियों को उच्च स्तर का शिक्षण सुलभ कराना मेरी प्राथमिकता है जिससे प्रतिस्पर्धा के युग में हमारा विद्यार्थी प्रबलित होकर अग्रिम पंक्ति में स्थान प्राप्त कर सके।
अधिगम एक सतत् प्रक्रिया होती है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है।महाविद्यालय के छात्र/ छात्राएं निरंतर ज्ञान प्राप्ति में संलग्न होकर धैर्य , साहस तथा आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्य पथ पर अग्रसर हों व निरन्तर उत्तरोत्तर प्रगति को प्राप्त करें तथा महाविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत भी 'विद्या ददाति विनयं' इस सूत्र वाक्य को स्मरण रखकर पुरातन छात्र के रूप में महाविद्यालय के विकास हेतु अपने प्रयासों एवं सुझावों से हमें अवगत करा कर अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान करते रहें ऐसी मेरी शुभाकांक्षा है।
डॉ० कुँवर भानु प्रताप सिंह
प्राचार्य